इस रफ्तार से 4 साल में कैसे दोगुनी होगी किसानों की इनकम!

नई दिल्ली,
21 अगस्त, 2018

20 जून को पीएम नरेंद्र मोदी वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए 600 से ज्यादा किसानों से बातचीत कर रहे थे, इसी दौरान उन्होंने ये दावा भी किया था कि सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को पाने के लिए कृषि क्षेत्र का बजट दोगुना करके 2.12 लाख करोड़ रुपये कर दिया है. हालांकि नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डवलपमेंट यानी नाबार्ड का ताज़ा सर्वे कह रहा है कि बीते चार सालों में किसानों की आय 2505 रुपए ही बढ़ सकी है. गांवों में रहने वाले 41% से ज्यादा परिवार अभी भी कर्जे में दबे हैं और इनमें से 43% वो हैं जिनकी आय कृषि पर निर्भर हैं.

कितनी बढ़ी किसानों की आय ?

नाबार्ड के इंडिया रूरल फाइनेंशियल इनक्लूजन सर्वे (NAFIS) के मुताबिक साल 2016-17 में भारत के गांव में रह रहे एक किसान परिवार की मासिक आय 8,931 रुपए हो गई है. नेशनल सैम्पल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (NSSO) के साल 2012-13 के आंकड़ों और इसी साल की नाबार्ड रिपोर्ट पर नज़र डालें तो पता चलता है कि तब किसानों की आय 6,426 रुपए प्रतिमाह थी. यानी किसानों की मासिक आय में 2,505 रुपए महीना कि बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है. इस सर्वे के मुताबिक भारतीय किसान अभी भी कई बड़ी परेशानियों से घिरे हैं जिसमें कर्ज, घटती आमदनी, फसल बीमा की कमी सबसे महत्वपूर्ण हैं.

गांव में रह रहे परिवारों की आमदनी कितनी ?

NAFIS सर्वे के मुताबिक गांव में रह रही आबादी का बड़ा हिस्सा आज भी किसानी या दिहाड़ी मजदूरी से अपना खर्चा चला रहा है. गांव में रह रहे परिवार की औसत आमदनी 8,931 रुपए है जिसका सबसे बड़ा हिस्सा 3140 रुपए करीब 35% अभी भी किसानी से ही आ रहा है. इस आमदनी का दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा 3025 रुपए करीब 34% दिहाड़ी मजदूरी से आ रहा है. सरकारी या प्राइवेट नौकरी से अभी भी सिर्फ 1444 रुपए सिर्फ 16% हिस्सा ही आ रहा है.

राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के चेयरमैन एच के भनवाला के मुताबिक ये सर्वे वित्तीय समावेश और ग्रामीणों आजीविका जैसे पहलुओं को एकसाथ लाने के प्रयासों को दिशा देने के लिए किया गया है. उन्होंने कहा, ‘नाबार्ड हर तीन वर्ष में सर्वेक्षण करता है. सर्वेक्षण से पता चला है कि कृषि से जुड़े परिवारों की आय में महत्वपूर्ण रूप से तेजी दर्ज की गई है, छोटे और मंझोले किसानों को इससे सबसे ज्यादा फायदा हो रहा है.

क्या कहती है डबलिंग फार्मर्स इनकम कमेटी ?

डबलिंग फार्मर्स इनकम कमेटी के अध्यक्ष डॉ. अशोक दलवाई ने बताया कि किसानों की प्रोडक्टिविटी बढ़ जाए, उत्पादन लागत कम हो, मार्केट मिल जाए और उचित मूल्य मिले तो किसानों की आय दोगुनी करने का सपना साकार हो सकता है. इस दिशा में सरकार काम कर रही है. पहले सिर्फ कृषि के बारे में सोचा जाता था लेकिन पहली बार किसानों के बारे में भी सोचा गया है, ताकि वह खुशहाल हों. कितनी उपज हुई इसके साथ-साथ यह बहुत महत्वपूर्ण है कि किसान को लाभ कितना मिला. उधर कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि प्रोडक्टिविटी बढ़ाने, उत्पादन लागत कम करने, मार्केट की उपलब्‍धता और उचित मूल्य मिलने से ही किसानों की आय बढ़ सकती है. फिलहाल आय बढ़ाने के लिए सरकार 14 खंडों में स्ट्रेटजी तैयार कर रही है. जिसके नौ खंड पब्लिक डोमेन (http://agricoop.nic.in/doubling-farmers) में डाल दिए गए हैं. 14वां अध्याय आय दोगुनी करने के लिए की जाने वाली सिफारिशों का है.

कमेटी के सदस्य एवं भाजपा किसान मोर्चा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष विजयपाल सिंह तोमर कांग्रेस पर सवाल करते हैं. उन्होंने कहा “देश में इस वक्त करीब 22 फीसदी किसान गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं, इसका जिम्मेदार कौन है? मोदी सरकार सबसे पहले किसानों को उनके घर के आसपास मार्केट उपलब्ध करवाने के लिए प्रयासरत है. 2000 करोड़ रुपये के एग्री मार्केट डेवलपमेंट फंड से 22 हजार देहाती हाट को मंडी में बदलेंगे. इससे उन्हें वाजिब दाम मिलेगा. हम मधुमक्खी पालन एवं फूड प्रोसेसिंग के लिए भी किसानों को प्रेरित करके आय बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं. सरकार ने कृषि ऋण को पिछले साल के 10 लाख करोड़ से बढ़ाकर 2018-19 में 11 लाख करोड़ कर दिया है.”

क्या कह रहे हैं कृषि मंत्री ?

News18Hindi  की खबर के अनुसार बीती 16 जुलाई को किसानों से जुड़े एक कार्यक्रम में कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने ये दावा किया है कि सरकार के पास 2022 तक किसानों की आय दुगनी करने का एक स्पष्ट खाका है. कृषि मंत्रालय, उर्वरक मंत्रालय, जल संसाधन मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय, उर्जा मंत्रालय, खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय, पंचायती राज मंत्रालय सहित विभिन्न विभाग एक साथ मिलकर दक्ष कृषि के लिए अनुकूल वातावरण बनाने का कार्य कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि इन प्रयासों से कृषि जिन्सों का मूल्यवर्द्धन होगा और कृषि प्रसंस्करण क्षेत्र में अतिरिक्त रोजगार का सृजन करके किसानों को अधिकतम लाभ प्रदान किया जा सकेगा.

राधामोहन सिंह ने कहा, “मेरा मंत्रालय 2022 तक किसानों की आय दुगनी करने के लिए प्रतिबद्ध है. इस लक्ष्य को प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में वृद्धि करके और प्रति किसान के स्तर पर कुल उत्पादन में वृद्धि, उर्वरक एवं कीटनाशक, श्रम, जल आदि जैसे उत्पादन कारकों को युक्तिसंगत बनाने के साथ कृषि लागत में कमी करके हासिल करने का लक्ष्य है. इसके साथ ही भंडारण, परिवहन, प्रसंस्करण और विपणन सहित उत्पादन गतिविधियों से किसानों की भागीदारी बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है.”

कई सवाल भी उठ रहे हैं

एग्रो इकॉनोमिस्ट देवेंद्र शर्मा नाबार्ड के इस सर्वे पर ही कई बड़े सवाल उठा रहे हैं. देवेंद्र के मुताबिक- “एक बैंक को ऐसा सर्वे करने की क्या ज़रुरत पड़ गई, क्या बैंक के पास और कोई काम नहीं है ? 2016 के इकॉनोमिक सर्वे में किसान परिवार की औसत सालाना आमदनी 20 हज़ार रुपए थी तो इन लोगों ने सर्वे का आधार 5000 मासिक रुपए आमदनी वाला किसान क्यों है, ऐसा करके इन्होने आधी से ज्यादा किसान आबादी को तो सर्वे से बहार कर दिया है. ऐसे सर्वे सिर्फ सरकार के प्रोपगैंडा को ही आगे बढ़ाने का काम करते हैं, ये सर्वे अगली रिपोर्ट में ये भी घोषणा कर सकता है कि किसानों की आमदनी दोगुनी हो गई है. नौकरियों के मामले में EPFO ने ये डेटा दे ही दिया है कि 55 लाख से ज्यादा नौकरियां पैदा हो चुकी हैं.”

देवेंद्र आगे कहते हैं कि असल में हम अर्थव्यवस्था के जिस मॉडल को आगे बढ़ा रहे हैं उसमें किसानों की कोई जगह नहीं है. वो उदाहरण देते हुए कहते हैं कि साल 1970 में गेहूं की एमएसपी 76 रुपए थी जो साल 2015 तक बढ़कर 1450 रुपए हो गई. इस बढ़ोत्तरी को अगर बाकी प्रोफेशन की तनख्वाह या आमदनी में बढ़ोत्तरी से तुलना की जाए तो ये सिर्फ 19% ही है. कृषि क्षेत्र में ध्यान न देने से हर साल किसानों को 12 लाख 80 हज़ार करोड़ रुपए का घाटा हो रहा है.

किसानों के ऐसे कई संगठन हैं जो इससे इत्तेफाक नहीं रखते. नाबार्ड की इस रिपोर्ट पर स्वराज इंडिया के योगेंद्र यादव भी कहते हैं कि अबी तो खुद सरकारी रिपोर्ट में ये स्पष्ट है कि पिछले चार साल की मोदी सरकार में किसानों की आय में कुछ खास इजाफा नहीं हो पाया है. बजट से पहले आए इकॉनोमिक सर्वे में अरविंद सुब्रमनयम ने भी इस बात का ज़िक्र किया था. सरकार को चाहिए कि किसानों की हालत में तत्काल सुधार के लिए 2 लाख करोड़ रुपए के रहत पैकेज की घोषणा करे. योगेंद्र के मुताबिक राहत पैकेज की घोषणा होती भी है तो इसका 25 फीसदी हिस्सा बंटाई या किराए पर खेती करने वाले किसानों, आदिवासी किसानों, महिला किसानों को मिले, क्योंकि इन वर्गों को संस्थागत लोन नहीं मिल पाते. उन्होंने कहा कि सरकार को खेती की पैदावार की न्यूनतम कीमत की गारंटी देनी चाहिए ओर किसानों का कर्ज माफ करना चाहिए. जिस गति से किसानों की आय में बढ़ोत्तरी हुई है उससे तो 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करना अभी संभव नज़र नहीं आता.

47 फीसदी परिवार कर्ज के बोझ से दबे हैं

सर्वे के दिन तक बकाया कर्ज के मामले में (आईओआई), कृषि से जुड़े 52.5 प्रतिशत परिवारों और 42.8 प्रतिशत गैर-कृषि परिवारों कर्ज में दबे हैं. हालांकि सर्वे कहता है कि ग्रामीण क्षेत्रों के 88.1 प्रतिशत परिवारों के पास बचत खाते हैं और 55% किसान परिवारों के पास भी बैंक खाता उपलब्ध है. किसान परिवारों की सालाना बचत औसतन 17,488 रुपए है. कृषि से जुड़े करीब 26 प्रतिशत परिवार और गैर-कृषि क्षेत्र के 25 प्रतिशत परिवार बीमा के दायरे में है. इसी प्रकार, 20.1 प्रतिशत कृषक परिवारों ने पेंशन योजना ली है जबकि इसके मुकाबले 18.9 प्रतिशत गैर-कृषक परिवारों के पास पेंशन योजना है.

राज्यों की स्थिति

ग्रामीण परिवारों के औसत आय के मामले में पंजाब (16,020) सबसे आगे है तो दूसरे नंबर पर केरल (15130) और तीसरे स्थान पर हरियाणा (12072) है. वहीं, इस मामले में अंतिम पायदन पर खड़े तीन राज्य उत्तर प्रदेश (6,257), झारखंड (5854) और आंध्र प्रदेश (5842) हैं. यह सर्वेक्षण में 2016-17 में किया गया और इसमें 40,327 ग्रामीण परिवार शामिल थे. यह सर्वे पूरे देश में किया गया है और 29 राज्यों के 245 जिलों में 2016 गांवों से नमूने एकत्र किए गए हैं. इस प्रक्रिया में कुल 1,87,518 लोगों को शामिल किया गया है.

क्या है किसानों की हालत

इस सर्वे के मुताबिक एक ग्रामीण परिवार की औसत सालाना आय 1,07,172 रुपये है, जबकि गैर-कृषि गतिविधियों से जुड़े परिवारों की औसत आय 87,228 रुपए है. हालांकि 2016 के आर्थिक सर्वे पर नज़र डालें तो कृषि पर निर्भर प्रमुख 17 राज्यों में किसानों की सालाना आय का औसत बीस हज़ार रुपए है. इस हिसाब से किसान हर महीने क़रीब 1,700 से 1,800 रुपए में अपने परिवार को पाल रहा है. एसोचैम के एक अनुमान के मुताबिक देश में कृषि इसलिए घाटे का सौदा साबित हो रही है क्योंकि हम जि‍स फल या सब्‍जी के लि‍ए दि‍ल्‍ली में 50 रुपए देते हैं. उसका व्‍यापारी कि‍सान को 5 से 10 रुपए ही देता है.

गौरतलब है कि देश की जीडीपी में तकरीबन 17 फीसदी की हि‍स्‍सेदारी एग्रीकल्‍चर सेक्‍टर की है. देश की 50% वर्कफोर्स कि‍सी न कि‍सी रूप में एग्रीकल्‍चर एंड अलाइड सेक्‍टर से रोजगार मि‍लता है. मगर एनएसएसओ के 70वें राउंड के मुताबि‍क, भारत में कि‍सान परि‍वार की औसत मासि‍क आय 6426 रुपए है. देश के 4.69 करोड़ कि‍सान कर्जदार हैं. साल 2016 में 11458 कि‍सानों ने आत्‍महत्‍या की और सरकार 2022 तक इनकी आय दोगुना करने का वादा कर चुकी है.

भारतीय कि‍सान यूनि‍यन के महासचि‍व धर्मेंद्र मलि‍क बताते हैं कि जब कि‍सान को उसके हि‍स्‍से की रोटी नहीं मि‍लेगी तो वह सड़कों पर आने को मजबूर होगा ही. सरकार वादे तो बहुत करती है मगर उन्‍हें पूरा नहीं कर रही. अपनी उपज सड़कों पर फेंकने के बाद कि‍सान आत्‍महत्‍या पर मजबूर हो रहा है मगर सरकार उसकी सुध नहीं ले रही है. सामाजिक कार्यकर्ता और किसान नेता शिवकुमार शर्मा उर्फ कक्काजी कहते हैं कि किसान को उसकी लागत से 30-40 फ़ीसदी तक कम कमाई हो रही है जिस कारण वो कर्ज़दार होता जा रहे हैं. हम सरकार से कर्ज़ माफ़ी की बात नहीं करना चाहते, हमें कर्ज़ से मुक्ति चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि सरकार कह रही हैं कि 2022 तक वो किसान की आय दोगुनी कर देंगे. लेकिन उस वक़्त तक तो ये काम बाज़ार ख़ुद कर देगा. सरकार को 2019 तक का जनादेश है. इसी में काम क्यों नहीं कर रही है.

ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी मुश्किल में

कृषि ने जनवरी-मार्च 2018 में इकोनॉमी की ग्रोथ भले बढ़ाई हो लेकिन सालाना उसकी विकास दर में भारी कमी देखने को मिली है. कृषि विकास दर 2016-17 के 6.3% से घटकर 3.4% रह गई है. हाल ही में नीति आयोग के अर्थशास्त्री रमेश चंद, एसके श्रीवास्तव और जसपाल सिंह ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बदलाव और उसके रोजगार सृजन के प्रभाव पर एक रिसर्च पेपर जारी किया था. इसमें तमाम सकारात्मक आर्थिक संकेतकों के साथ-साथ ग्रामीण रोजगार और अर्थव्यवस्था पर कई ज़रूरी मुद्दे उठाए हैं.

इस रिसर्च पेपर के अनुसार 2004-05 की कीमतों के मुताबिक 1970-71 से 2011-12 के दौरान भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विस्तार 3,199 बिलियन रुपये से 21,107 बिलियन रुपये हो गया है. इसमें करीब 7 गुना विकास दर्ज किया गया है. दूसरी तरफ इससे सृजित होने वाले रोजगार का विकास 191 मिलियन से 336 मिलियन ही हुआ है. यानी के इसमें दोगुना से भी कम विकास देखा गया है. इस रिपोर्ट के मुताबिक बीते 4 सालों में कृषि रोजगारों में भारी कमी देखने को मिल रही है.

आर्थिक वृद्धि और अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक बदलावों के चलते कृषि और सहयोगी सेक्टरों का जीडीपी में योगदान 2004-05 में 19 फीसदी से घटकर 2013-14 में 14 फीसदी रह गया. बहरहाल इसमें से अगर अब हम मछली पालन हटा दें तो ये सिर्फ 12% के आस-पास है. राज्यों के मुताबिक इसे समझें तो 13 राज्यों में कृषि का जीडीपी योगदान 20 फीसदी से ज्यादा का है. सबसे अधिक 30 फीसदी अरुणाचल प्रदेश में, 20-29 फीसदी आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, पंजाब, मध्य प्रदेश, और झारखंड आदि में, 15-19 फीसदी हरियाणा, हिमाचल, झारखंड, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक आदि में और 15 फीसदी से कम गुजरात, केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और उत्तराखंड में है.

(साभार- Ankit Francis का लेख, News18Hindi)

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