रायबरेली के डेयरी संचालक शेखर त्रिपाठी बने मिसाल, रोजाना होता है 400 लीटर दूध का उत्पादन

डेयरी टुडे नेटवर्क,
रायबरेली, 14 अक्टूबर 2017,

डेयरी खोलना बड़ी बात नहीं है लेकिन अपनी सूझबूझऔर प्रबंधन क्षमता से डेयरी फार्म को चलाना और उससे प्रोफिट कमाना बड़ी बात है। खासकर उत्तर प्रदेश में कामधेनु डेयरी योजना के तहत खोले गए हजारों डेयरी फार्म पर तो ये बात पूरी तरह लागू होती है। क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में यूपी में इस योजना के तहत कई डेयरी फार्म खुले, लेकिन आज उनमें से कई फार्म बंदी की कगार पर पहुंच चुके हैं। आज हम डेयरी के सुल्तान में यूपी के रायबरेली के ऐसे ही एक डेयरी संचालक की सफलता की कहानी बता रहे हैं, जिन्होंने अपने कौशल और जज्बे सेे ना सिर्फ आदर्श डेयरी फार्म स्थापित किया बल्कि उसे कुशलता से चला भी रहे हैं।

शुद्ध दूध उपलब्ध कराने के मकसद से खोला डेयरी फार्म


रायबरेली के 40 वर्षीय शेखर त्रिपाठी उच्च शिक्षित हैं, इन्होंने बीएससी, एमए, एलएलबी और एमबीए किया है। शेखर त्रिपाठी लखनऊ में आईएएस परीक्षार्थियों के लिए कोचिंग इंस्टीट्यूट भी चलाते हैं साथ ही अपने क्षेत्र में इंटर कॉलेज का भी संचलान करते हैं। इतना सब होने के बाद भी इन्हें गांव में जमीन से जुड़ा काम करने में काफी खुशी होती है। बस गांव की मिट्टी से जुड़ने और लोगों को शुद्ध दूध उपलब्ध कराने के मकसद से शेखर त्रिपाठी ने डेयरी फार्म खोलने का मन बनाया और सफल भी हुए।

साल 2015 में जब शेखर त्रिपाठी के मन में डेयरी खोलने का विचार आया उस वक्त उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से कामधेनु डेयरी योजना चल रही थी। शेखर ने इसी योजना के तहत आवेदन किया और उन्हें रायबरेली की लालगंज तहसील के फैजोरा गांव में उनकी पुश्तैनी जमीन पर कामधेनु डेयरी खोलने की अनुमति मिल गई। शेखर त्रिपाठी ने एक करोड़ लोन लेकर और कुछ पैसा अपने पास से लगाकर आठ बीघा जमीन पर कामधेनु गौशाला के नाम से डेयरी फार्म खोल दिया।

50 गायों से शुरू की कामधेनु गौशाला


शेखर त्रिपाठी ने डेयरी फार्म की शुरुआत हॉलिस्टियन फ्रीशियन ब्रीड की 50 गायों के साथ की थी। गायों के लिए इन्होंने 15 हजार वर्ग फीट का अत्याधुनिक शेड बनबाया, ताकि गायें आराम से बंधी रह सकें। आज इनके फार्म में 90 गायें हैं। शेखर के मुताबिक गायों को दूध दुहने के बाद खुला छोड़ दिया जाता है। गायों के लिए फार्म में ही हरा चारा उगाया जाता है। और इस चारे की खेती प्राकृतिक तरीके यानी गाय के गोबर और गोमूत्र से की जाती है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक चारे की वजह से गायों का स्वास्थय ठीक रहता है और दूध भी ज्यादा होता है। इतना ही नहीं शेखर त्रिपाठी गायों को पौष्टिक चारा उपलब्ध कराने के लिए सहजन, नेपियर घास, जिनी घास की खेती भी करने की तैयारी कर रहे हैं, जिससे गायों को और ज्यादा पौष्टिक चारा उपलब्ध हो सकेगा।

रोजाना होता है 400 लीटर दूध का उत्पादन


शेखर त्रिपाठी की कामधेनु गौशाला में गायों को सेवा भाव से पाला जाता है। उन्होंने बताया कि पहले गायों को दुहने के लिए मशीन का इस्तेमाल करते थे लेकिन कुछ दिक्कतें आने पर अब हाथ से ही दूध दुहा जाता है। इनके डेयरी फार्म में रोजाना औसतन 400 लीटर दूध का उत्पादन होता है। शेखर त्रिपाठी अपने फार्म के दूध की मार्केटिंग भी खुद करते हैं। इन्होंने बताया कि सारा दूध रायबरेली में ही रेल कोच फैक्ट्री कालोनी निवासियों को बेचा जाता है। गाय के दूध की कीमत 40 रुपये प्रति लीटर है। इन्होंने अपने फार्म पर ही 1000 लीटर का बल्क मिल्क कूलर यानी बीएमसी लगा रखा है, जहां दूध को एकत्र कर उसे 4 डिग्री तक ठंडा रखा जाता है। गायों की देखभाल और दूध सप्लाई करने के लिए कुल 16 लोगों का स्टॉफ भी रखा है।

हर महीने डेढ़ लाख की किश्त और सारा खर्चा डेयरी फार्म की कमाई से


शेखर त्रिपाठी ने बताया कि तमाम परेशानियों के बाद भी उनका डेयरी फार्म आज नो प्रोफिट नो लॉस पर चल रहा है। इन्होंने डेयरी फार्म के लिए एक करोड़ का लोन लिया था जिसकी डेढ़ लाख रुपये प्रति महीने की किश्त जाती है और बाकी गायों के रखरखाव और स्टॉफ की सेलरी पर खर्च हो जाता है। लेकिन इनका कहना है कि जैसे ही बैंक का लोन खत्म हो जाएगा इन्हें डेयरी फार्म से अच्छी खासी आमदनी होने लगेगी।

सरकार से नहीं मिल रही कोई सहायता: शेखर


डेयरी टुडे से बातचीत के दौरान शेखर त्रिपाठी ने एचएफ गायों को पालने में होने वाली दिक्कतों का भी जिक्र किया, गर्मी के दिनों में इन गायों को पालने में काफी परेशानी होती है, संवेदनशील होने की वजह से ये गायें बीमार ज्यादा होती हैं। और इनके लिए मेडिकल सुविधाएं ज्यादा नहीं है। इसके साथ ही शेखऱ ने सरकार की तरफ से दूध की बिक्री और पशुओं की चिकित्सा में कोई सहूलियत नहीं मिलने की बात भी कही। शेखर के मुताबिक पंजाब, हरियाणा की तरह दाना और चारे पर सब्सिडी नहीं मिलती, बिजली की आपूर्त ठीक नहीं है इस वजह से डेयरी फार्म संचालन में खर्चा ज्यादा आता है। हालांकि शेखर त्रिपाठी अपने काम से संतुष्ट हैं और उनका कहना है कि यदि दूध की बिक्री खुद की जाए और कुशलता के साथ प्रबंधन किया जाए तो डेयरी फार्मिंग घाटे का सौदा नहीं है, एक वक्त के बाद डेयरी फार्मिंग से अच्छी-खासी कमाई की जा सकती है। शेखर त्रिपाठी यूपी कामधेनु डेयरी फार्मर्स वेलफेयर एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष भी हैं और डेयरी संचालकों के हित में लगातार काम भी करते रहते हैं।

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