जो गौ माता पहले जीवन का हिस्सा होती थी, आज उसमें नफा-नुकसान देखा जाता है

आज हमारे देश में गौ माता के प्रति लोग काफी चिंतित हैं। लेकिन यह चिंता जमीनी हकीकत से काफी दूर है और गौ माता सिर्फ एक उपयोग की चीज बन कर रह गयी है। वैदिक काल से ही हम गाय को देवी या माता की श्रेणी में रखते थे, लेकिन धीरे-धीरे लोगों का गौ माता के प्रति ये श्रद्धाभाव खत्म होता जा रहा है। आज ज्यादातर लोग गाय को केवल दूध देने के समय ही घर पर रखते है और जब गाय का दूध देने का समय पूरा हो जाता है, तो उसे आवारा जानवर की तरह छोड़ देते हैं। आपको शहरों में गांवों में हर जगह गली-महोल्लों और खेतों में गाय ऐसी ही विचरण करती हुई और अपने लिए चारा ढूंढ़ती नजर आ जाएंगी।

गौ माता हमारी संस्कृति के साथ जुड़ी हुई है। अगर गौ माता को वैज्ञानिक नजरिये से भी देखा जाये तो गाय का दूध बहुत ही पोषक होता है। इसके सेवन से शरीर में चेतना भी आती है। अगर राज्य और केंद्र सरकार की बात करें तो दोनों के द्वारा गौ सेवा आयोग का गठन सन 2000 में किया गया और आज देश के हर राज्य में लगभग गौसेवा आयोग राज्य सरकारों द्वारा बनाया गया है, लेकिन अभी तक गौमाता को इससे कोई फायदा नहीं हुआ है। सरकारी गौशालाओं में भी वो सुविधा नहीं मिलती है, जो मिलनी चाहिए। चाहे वो चारे भूसे की सुविधा हो या स्वच्छ पेयजल की। गौशालाओं में आज भी वही स्थिति है, जो पहले थी और आए दिनों गाय बीमारी या सड़क दुर्घटना की शिकार होती हैं।

दूध उत्पादन को देखा जाए तो ब्राजील देश में एक गाय से आज करीब 40 लीटर से 60 लीटर प्रत्येक दिन दूध दुहन हो रहा है और हमारे देश में आज भी इस गौमाता का दूध दुहन करीब 10 से 15 लीटर प्रतिदिन है। हाल ही में जापान ने इंडो जापान प्रोजेक्ट भी हमारी देशी गौमाता के साथ साझा किया है और इसकी उपयोगिता को समझते हुए 5 साल के लिए निवेश किया है। लेकिन हमारा किसान गौपालक आज भी इस बात को समझने को तैयार नहीं है। अगर देश में देसी नस्ल की बात की जाए तो आज भी 43 तरह के अलग-अलग रीजन में गौमाता पाली जाती है। जनसंख्या की बात की जाये तो करीब देश में 145.55 मिलियन गौमाता हैं।

हम गौ माता को अगर परिवार के सदस्य की तरह घर पर पालते है तो इसके बहुत फायदे भी जो कि अन्य किसी भी जानवर को पालने से नहीं होते हैं। लेकिन आधुनिकता में आज-कल हम इतने अंधे हो गए हैं कि अपनी वैदिक रीतियों को भूलते जा रहे हैं और अब बस कमी रह गयी है वो सिर्फ जानकारी के अभाव की है। इसके लिये समय समय पर पशुपालन विभाग को इसके लिये चेतना जाग्रत करनी होगी।

(लेखक- नीरज कुमार दीक्षित, शोध छात्र, इलाहाबाद कृषि विश्वविद्यालय, प्रयागराज)

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