पशुपालन विभाग में मनमानी और फिजूलखर्ची से खजाने को करोड़ों की चपत, CAG रिपोर्ट में खुलासा

डेयरी टुडे नेटवर्क,
लखनऊ/नई दिल्ली, 21 अगस्त, 2021

उत्तर प्रदेश के पशुपालन विभाग में हर स्तर पर मनमानी का राज है। विभाग न सिर्फ अपने कार्यों व योजनाओं को लेकर लगातार उदासीन बना हुआ है, बल्कि कई केंद्रीय योजनाओं व कार्यक्रमों को प्रदेश में विफल करने का काम कर रहा है। इससे पशुधन संरक्षण में मुश्किलें आ रही हैं और सरकारी खजाने को करोड़ों की चपत भी लग रही है।

अमर उजाला में छपी खबर के मुताबिक नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने पशुपालन विभाग की मूलभूत आवश्यकताओं की उपलब्धता व विकास से संबंधित कार्यवाही की समीक्षा की है। कैग ने विभाग की गतिविधियों की नमूना जांच के लिए आगरा, बाराबंकी, गोंडा, गोरखपुर, हमीरपुर, महराजगंज, मथुरा व सहारनपुर को चयनित किया। वर्ष 2014-15 से 2018-19 के बीच इस संबंध में किए गए प्रयासों की पड़ताल में बड़े पैमाने पर मनमानी का खुलासा हुआ। पता चला न सिर्फ केंद्रीय योजनाओं का लाभ उठाने में सुस्ती बरती जा रही है बल्कि बजट खर्च में भी उदासीनता बरकरार है। अस्तपालों में डॉक्टर-फार्मासिस्ट की कमी है, लेकिन बिना उपकरण व कार्मिक मोबाइल क्लीनिक दौड़ाई जा रही है।

कैग ने सिफारिश की है कि विभाग अपने पास उपलब्ध संसाधनों का सर्वे कराकर पशुपालन संबंधी बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर के सृजन का काम करे। साथ ही समयसीमा तय कर पशु चिकित्सालयों की कमी दूर करे और जरूरी संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित कराए। कैग ने केंद्रीय योजनाओं का लाभ तेजी से लाभ उठाने का तंत्र विकसित करने की संस्तुति की है।

पशुपालन विभाग में हर कदम पर मनमानी का राज

– विभाग को 2014-15 से 2018-19 के बीच पशु चिकित्सालयों की स्थापना आदि के लिए 969 करोड़ रुपये मिले, लेकिन 309 करोड़ खर्च नहीं कर पाया।

– चारा व चारागाह, पशु जैव विविधता और बेसिक इन्फ्रास्टक्चर के विकास के लिए व्यापक पशुधन नीति नहीं थी। फिर भी राष्ट्रीय पशुधन नीति 2013 नहीं अपनाई गई।

– पशु चिकित्सालयों की स्थापना के लिए मानक बनाए, लेकिन उसे जरूरीसंसाधनों से सुसज्जित करने के कोई मानक नहीं तय किए।

– केंद्र ने राष्ट्रीय पशुधन मिशन शुरू किया और आर्थिक सहायता दी। विभाग इसका लाभ नहीं उठा सका और 5.43 करोड़ रुपये केंद्र को लौटा देने पड़े।

– सरकार ने वर्ष 2005 में कम से कम 15 हजार पशुधन पर एक पशु चिकित्सक की तैनाती का लक्ष्य रखा गया। पर, पशु चिकित्सकों व सहायक पशु चिकित्सीय कर्मचारियों के संवर्ग में 12 से 47 प्रतिशत तक कमी थी।

– अस्पतालों के लिए दवाओं व उपकरणों की लिस्ट तय की गई, लेकिन पशु चिकित्सालयों में इनकी आपूर्ति नहीं हो रही थी।

– मोबाइल क्लीनिक शुरू किए गए, पर डॉक्टर, फार्मासिस्ट और आवश्यक उपकरण नहीं दिए गए।

– पशु चिकित्सा जैविक संस्थान लखनऊ की टीका उत्पादन इकाई खामियों की वजह से बंद कर दी गई, लेकिन इसे फिर से शुरू कराने में उदासीनता बनी रही। इससे प्रति वर्ष वैक्सीन खरीद में बड़ी धनराशि खर्च करनी पड़ी।

– बिना अधिकार अलीगढ़ व मेरठ में मांस-गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशाला बनवाने लगे। बाद में प्रोजेक्ट रद्द करना पड़ा। इस पर खर्च 79.56 करोड़ का खर्च बेकार साबित हुआ।

– केंद्र की राष्ट्रीय पशुरोग सूचना प्रणाली का भी ठीक से उपयोग नहीं किया जा सका।

चकगजरिया उजाड़ दिया, लेकिन 679 करोड़ रुपये नहीं दिया

सरकार ने आईटी सिटी व अन्य प्रोजेक्ट की स्थापना के लिए पशुपालन विभाग के चकगजरिया फार्म की 846.49 एकड़ भूमि लखनऊ विकास प्राधिकरण (526.49 एकड़) व अन्य राजकीय विभागों (320 एकड़) को हस्तांतरित कर दी थी। एलडीए को जमीन के बदले 679.91 करोड़ रुपये पशुपालन विभाग को देने थे। इससे फार्म की गतिविधियां अन्य स्थानों पर शुरू करने की योजना थी। कैग ने खुलासा किया कि मार्च 2020 तक एलडीए ने वह धनराशि पशुपालन विभाग को नहीं दी। साथ ही अश्व प्रजनन केंद्र व चारा बीज उत्पादन इकाई नए स्थान पर स्थापित नहीं कराई गई। इसे बाराबंकी में स्थापित कराना था।

आगरा में सेंट्रल आक्सीजन सिस्टम पर 1.88 करोड़ की फिजूलखर्ची

जिला चिकित्सालय आगरा में सेंट्रल आक्सीजन सिस्टम लगाने में 1.88 करोड़ की फिजूलखर्ची की गई। इसके बाद भी आठ से 10 साल बाद सिस्टम शुरू नहीं हो सका। कैग के अनुसार, जिला चिकित्सालय आगरा के उच्चीकरण के दौरान फरवरी 2010 में 2.76 करोड़ व दिसंबर 2011 में 2.70 करोड़ स्वीकृत किए गए। सेंट्रल आक्सीजन सिस्टम के लिए मार्च 2010 में 0.83 करोड़ और मार्च 2012 में 1.29 करोड़ की लागत से 110 बेड के लिए सिस्टम आपूर्ति की गई। अनुबंध में आपूर्तिकर्ताओं ने न तो सिस्टम की स्थापना और न ही क्रियाशील करने संबंधित कोई शर्त रखी गई।

सिस्टम के काम करने से पहले ही आपूर्तिकर्ता को 2.12 करोड़ देने के कारण उसने आगे कोई रुचि नहीं ली। मई 2016 में जिला चिकित्सालय ने महानिदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं को 77,950 की अतिरिक्त राशि देने या सिस्टम को चलाने के लिए आपूर्तिकर्ता को निर्देश देने को कहा गया। डीएम ने दोनों आपूर्तिकर्ता को पत्र लिखा तो एक ने 3.61 लाख अतिरिक्त मांगे। जून 2020 तक यह राशि जारी नहीं की जा सकी। शासन ने मामले की जांच कराने और भविष्य में ऐसी घटना की पुनरावृत्ति रोकने की बात कही।

(साभार- अमर उजाला)

775total visits.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

लोकप्रिय खबरें