बजट 2019: डेयरी व्यवसाय से जुड़े 7 करोड़ किसान पूछ रहे हैं मोदी सरकार से, बजट से हमें क्या मिला?

डेयरी टुडे नेटवर्क,
नई दिल्ली, 5 जुलाई 2019,

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार हमेशा 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की बता करती है। यह सभी जानते हैं कि खेती के अलावा किसानों की आय का सबसे बड़ा स्रोत डेयरी फार्मिंग और पशुपालन है। डेयरी के विकास के लिए मोदी सरकार बांते भी बड़ी-बड़ी करती है। मोदी सरकार पार्ट-2 नें अलग से डेयरी मंत्रालय भी बनाया लेकिन जब बजट में कुछ देने की बारी आई तो देश के 7 करोड़ से अधिक डेयरी किसानों और डेयरी व्यवसाय से जुड़े लोगों को क्या मिला।

बजट में सिर्फ घोषणा, डेयरी को बढ़ावे का कोई रोडमैप नहीं

लोकसभा में अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने डेयरी कामों को बढ़ावा देने और दूध उत्पादन बढ़ाने की बात कही। लेकिन उन्होंने इसके लिए कोई रोडमैप नहीं बताया कि दुनिया में सबसे अधिक दूध उत्पादन के बाद भी यहां के किसानों को दूध का उचित दाम कैसे मिलेगा। वित्त मंत्री ने यह नहीं बताया कि डेयरी व्यवसाय से मुंह मोड़ने वाले किसानों में सरकार भरोसा जगाने के लिए क्या कर रही है।

 

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किसानों को दूध का दाम कैसे मिलेगा, इस पर कोई फोकस नहीं

शायद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारण को यह नहीं बता है कि देशभर में डेयरी कंपनियां चाहे वो सहकारी हों, सरकारी हों या फिर प्राइवेट, सभी 20 से 30 रुपये प्रति लीटर दूध किसानों को खरीदती हैं और 45 से 50 रुपये प्रति लीटर बेचती हैं। हरियाणा के रोहतक के किसान सुखवीर पिलानिया के मुताबिक, “पशुचारे की कमी, दवाइयां महंगी होने से किसानों के दुग्ध उत्पादन की लागत लगातार बढ़ती जा रही है, लेकिन दूध खरीद के दाम बढ़ नहीं रहे हैं, जो दूध हमसे 20 से 30 रुपये में खरीदा जाता है वो 50 रुपए में बिकता है। ऐसे में पशुपालन और दुग्ध उत्पादन के क्या फायदा है।”

बजट में दूध के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कोई बात नहीं की

दरअसल, इसका एक ही उपाय है कि अन्य फसलों की तरह दूध का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय किया जाए। इसके लिए देशभर के डेयरी किसान कई वर्षों से मांग भी कर रहे हैं। अगर दूध का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय हो जाएगा, तो कम से कम इतना तो तय हो जाएगा कि डेयरी किसानों को दूध की कीमत कम से कम इतने रुपये प्रति लीटर तो मिलेगी। उत्तर प्रदेश के बागपत के डेयरी किसान बलराम यादव का कहना है कि अगर दूध का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय हो जाए तो किसानों को न सिर्फ लाभ होगा बल्कि डेयरी कंपनियों को उनके मनमाने दामों को दूध बेचना नहीं पड़ेगा।

 

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सरकार की मंशा दूध का एमएसपी घोषित करने की नहीं

आपको बता दें कि मोदी सरकार की मंशा दूध का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने की है भी नहीं। अभी कुछ दिन पहले ही पशुपालन एवं डेयरी राज्यमंत्री डॉ संजीव कुमार बालियान ने राज्यसभा को एक प्रश्न के लिखित उत्तर में जानकारी दी थी कि पिछले कई वर्षों से देश में दूध का उत्पादन बढ़ा है, लेकिन दूध के न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करने का कोई प्रस्ताव नहीं है। उन्होंने यह भी कहा था कि दूध बहुत जल्दी खराब होने वाला पदार्थ है, इसलिए सरकार का देश में दूध के लिए एमएसपी निर्धारित करने का कोई प्रस्ताव नहीं है।

दुग्ध उत्पाद में भारत अव्वल, फिर भी डेयरी किसान परेशान

आपको बता दें कि भारत विश्व में दुग्ध उत्पादन में नंबर एक है। भारतम में साल 2018 में 176.3 मिलियन टन दूध का उत्पादन हुआ, जो विश्व के कुल दूध उत्पादन का लगभग 20 प्रतिशत था। इसके बावजूद दुग्ध व्यवसाय से जुड़े लोग सही कीमत के लिए परेशान हैं। दूध में उपलब्ध फैट और एसएनएफ के आधार पर ही दूध की कीमत तय होती है। को ऑपरेटिव की तरह दूध के जो दाम तय किए जाते हैं वह 6.5 फ़ीसदी फैट और 9.5 फ़ीसदी एसएनएफ के होते हैं। इसके बाद जिस मात्रा में फैट कम हो जाता है उसी तरह कीमत में कमी आ जाती है।

 

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फिलहाल पशुपालन और डेयरी व्यवसाय घाटे का सौदा

डेयरी से जुड़े वो ही किसान फायदे में है, जो दूध को सीधे ग्राहकों को बेच देते हैं। लेकिन ऐसा सिर्फ शहरों के नजदीक स्थित गांवों को डेयरी किसान ही कर पाते हैं। बाकी दूर-दराज के इलाकों में पशुपालन करने वाले तो डेयरी कंपनियों पर ही निर्भर हैं। जाहिर है कि अगर दूध के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य तय हो तो ऐसे किसान को दूध के उचित मूल्य मिल सकते हैं। पशुपालन और डेयरी फार्मिंग में एक और चीज है जिसका सरकारी ढांचा बिलकुल चरमराया हुआ है। हम बात कर रहे हैं पशुओं की चिकित्सा की। बदायूं के पशुपालक यशपाल तिवारी का कहना है, “सरकारी पशु अस्पतालों की कमी, सरकारी डॉक्टरों की उपलब्धता नहीं होने की वजह से मजबूर निजी पशु चिकित्सकों से इलाज कराना पड़ता है। और इसमें बहुत अधिक रकम खर्च करनी पड़ती है। मोदी सरकार ने बजट में इस ओर भी कोई ध्यान नहीं दिया है।”

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